श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 17: भगवान् कृष्ण द्वारा वर्णाश्रम प्रणाली का वर्णन  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  11.17.48 
 
 
वैश्यवृत्त्या तु राजन्यो जीवेन्मृगययापदि ।
चरेद् वा विप्ररूपेण न श्ववृत्त्या कथञ्चन ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  एक राजा या शाही परिवार का सदस्य, जो अपनी सामान्य आजीविका से अपना निर्वाह नहीं कर पाता, वह वैश्य की तरह व्यापार कर सकता है, शिकार करके जीवनयापन कर सकता है या ब्राह्मण की तरह दूसरों को वैदिक ज्ञान सिखाकर जीवनयापन कर सकता है। लेकिन किसी भी स्थिति में उसे शूद्र के काम नहीं अपनाने चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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