श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 14: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव से योग-वर्णन  »  श्लोक 32-33
 
 
श्लोक  11.14.32-33 
 
 
श्रीभगवानुवाच
सम आसन आसीन: समकायो यथासुखम् ।
हस्तावुत्सङ्ग आधाय स्वनासाग्रकृतेक्षण: ॥ ३२ ॥
प्राणस्य शोधयेन्मार्गं पूरकुम्भकरेचकै: ।
विपर्ययेणापि शनैरभ्यसेन्निर्जितेन्द्रिय: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने कहा : एक ऐसे आसन पर बैठें जो ना तो बहुत ऊँचा हो और ना ही बहुत नीचा हो और शरीर को सीधा रखें जिससे आराम मिले। दोनों हाथों को गोद में रखें और आँखों को नाक के अगले सिरे पर केन्द्रित करें। अब पूरक, कुम्भक और रेचक नामक प्राणायाम की यांत्रिक क्रियाओं का अभ्यास करें और फिर इस प्रक्रिया को उलट कर करें (यानी रेचक, कुम्भक और पूरक के क्रम से)। इन्द्रियों को अच्छी तरह से वश में करने के बाद, प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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