श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 90: भगवान् कृष्ण की महिमाओं का सारांश  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.90.27 
 
 
या: सम्पर्यचरन्प्रेम्णा पादसंवाहनादिभि: ।
जगद्गुरुं भर्तृबुद्ध्या तासां किं वर्ण्यते तप: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  और उन स्त्रियों की महातपस्या का वर्णन कौन कर सकता है, जिन्होंने विश्व के गुरु की शुद्ध प्रेम-भाव से सेवा की? वे उन्हें अपना पति मानती थीं और उनके चरण दबाने जैसी अंतरंग सेवा भी करती थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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