श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 90: भगवान् कृष्ण की महिमाओं का सारांश  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.90.13 
 
 
कृष्णस्यैवं विहरतो गत्यालापेक्षितस्मितै: ।
नर्मक्ष्वेलिपरिष्वङ्गै: स्‍त्रीणां किल हृता धिय: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण अपनी रानियों के साथ क्रीड़ा करते थे, और अपने हाव-भाव, बातें, चितवन और हँसी और साथ ही अपने परिहास, छेड़खानी और आलिंगन द्वारा उनके हृदयों को पूरी तरह से मोह लेते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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