श्रीशुक उवाच
सरस्वत्यास्तटे राजन्नृषय: सत्रमासत ।
वितर्क: समभूत्तेषां त्रिष्वधीशेषु को महान् ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : हे राजन्, एक बार सरस्वती नदी के किनारे ऋषियों का एक समूह वैदिक यज्ञ कर रहा था। तब उनके बीच यह विवाद खड़ा हो गया कि तीन मुख्य देवी-देवताओं में श्रेष्ठ कौन है।