श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  10.88.40 
 
 
य एवमव्याकृतशक्त्युदन्वत:
परस्य साक्षात् परमात्मनो हरे: ।
गिरित्रमोक्षं कथयेच्छृणोति वा
विमुच्यते संसृतिभिस्तथारिभि: ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान हरि जीवों को मोक्ष प्रदान करने वाले मूल तत्त्व हैं, परम आत्मा हैं और असीमित अकल्पनीय शक्तियों के महासागर हैं। कोई भी व्यक्ति जो शिव को बचाने के उनके इस लीला का वर्णन करता है या सुनता है, वह सभी शत्रुओं और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएगा।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत अट्ठासी अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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