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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा
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श्लोक 35
श्लोक
10.88.35
इत्थं भगवतश्चित्रैर्वचोभि: स सुपेशलै: ।
भिन्नधीर्विस्मृत: शीर्ष्णि स्वहस्तं कुमतिर्न्यधात् ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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[शुकदेव गोस्वामी ने कहा] : श्री भगवान के सम्मोहक और चतुर शब्दों से मोहित होकर मूर्ख वृक ने बिना जाने हुए कि वह क्या कर रहा है, अपने खुद के सिर पर अपना ही हाथ रख लिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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