श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  10.88.33 
 
 
यदि वस्तत्र विश्रम्भो दानवेन्द्र जगद्गुरौ ।
तर्ह्यङ्गाशु स्वशिरसि हस्तं न्यस्य प्रतीयताम् ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महापराक्रमी असुर, यदि तुम सचमुच उनके नाम पर विश्वास करते हो और मानते हो कि वे समूचे ब्रह्मांड के गुरु हैं, तो फिर देर किस बात की बिना कुछ विचारे अपना हाथ अपने सिर पर रखकर देखो कि क्या होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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