श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.88.32 
 
 
श्रीभगवानुवाच
एवं चेत्तर्हि तद्वाक्यं न वयं श्रद्दधीमहि ।
यो दक्षशापात् पैशाच्यं प्राप्त: प्रेतपिशाचराट् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् ने कहा: यदि ऐसा ही है, तो हम शिव के कहने पर विश्वास नहीं कर सकते। शिव तो पिशाचों के वही स्वामी हैं, जिन्हें दक्ष ने मानव-भक्षी पिशाच बनने का शाप दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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