श्रीभगवानुवाच
एवं चेत्तर्हि तद्वाक्यं न वयं श्रद्दधीमहि ।
यो दक्षशापात् पैशाच्यं प्राप्त: प्रेतपिशाचराट् ॥ ३२ ॥
अनुवाद
भगवान् ने कहा: यदि ऐसा ही है, तो हम शिव के कहने पर विश्वास नहीं कर सकते। शिव तो पिशाचों के वही स्वामी हैं, जिन्हें दक्ष ने मानव-भक्षी पिशाच बनने का शाप दिया था।