श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.88.30 
 
 
यदि न: श्रवणायालं युष्मद्‌व्यवसितं विभो ।
भण्यतां प्रायश: पुम्भिर्धृतै: स्वार्थान् समीहते ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाशक्तिमान, यदि आप हमें इस योग्य समझते हैं तो हमें बताइए कि आप क्या करना चाहते हैं। आमतौर पर मनुष्य दूसरों की सहायता से अपने कार्यों को सिद्ध करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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