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अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा
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श्लोक 29
श्लोक
10.88.29
श्रीभगवानुवाच
शाकुनेय भवान् व्यक्तं श्रान्त: किं दूरमागत: ।
क्षणं विश्रम्यतां पुंस आत्मायं सर्वकामधुक् ॥ २९ ॥
अनुवाद
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भगवान ने कहा: हे शकुनि-पुत्र! तू थका हुआ लग रहा है। तू इतनी दूर क्यों आया है? थोड़ी देर आराम कर ले। अंततः मनुष्य का शरीर ही उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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