दशास्यबाणयोस्तुष्ट: स्तुवतोर्वन्दिनोरिव ।
ऐश्वर्यमतुलं दत्त्वा तत आप सुसङ्कटम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
उनके यश का गुणगान शाही दरबार के गायकों की तरह करने वाले दस सिरों वाले रावण और बाण से वे प्रसन्न हुए। तब शिवजी ने उन दोनों को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान की, किंतु परिणामस्वरूप उन्हें दोनों के कारण महान संकटों का सामना करना पड़ा।