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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 88: वृकासुर से शिवजी की रक्षा
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श्लोक 14
श्लोक
10.88.14
वृको नामासुर: पुत्र: शकुने: पथि नारदम् ।
दृष्ट्वाशुतोषं पप्रच्छ देवेषु त्रिषु दुर्मति: ॥ १४ ॥
अनुवाद
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एक बार के रास्ते में जब नारद भ्रमण कर रहे थे, तो शकुनि का पुत्र वृक नाम का राक्षस उनसे मिला। इस दुष्ट वृक ने नारद जी से पूछा कि तीनों प्रमुख देवताओं में से किसे जल्दी से प्रसन्न किया जा सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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