श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 87: साक्षात् वेदों द्वारा स्तुति  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.87.7 
 
 
तत्रोपविष्टमृषिभि: कलापग्रामवासिभि: ।
परीतं प्रणतोऽपृच्छदिदमेव कुरूद्वह ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  वहाँ नारद भगवान् नारायण ऋषि के पास पहुँचे, जो कलाप गाँव के ऋषियों के मध्य में बैठे हुए थे। हे कुरुनाथ, भगवान् को प्रणाम करके नारद ने उनसे वही प्रश्न पूछा, जो तुमने मुझसे पूछा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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