तत्रोपविष्टमृषिभि: कलापग्रामवासिभि: ।
परीतं प्रणतोऽपृच्छदिदमेव कुरूद्वह ॥ ७ ॥
अनुवाद
वहाँ नारद भगवान् नारायण ऋषि के पास पहुँचे, जो कलाप गाँव के ऋषियों के मध्य में बैठे हुए थे। हे कुरुनाथ, भगवान् को प्रणाम करके नारद ने उनसे वही प्रश्न पूछा, जो तुमने मुझसे पूछा है।