यो वै भारतवर्षेऽस्मिन् क्षेमाय स्वस्तये नृणाम् ।
धर्मज्ञानशमोपेतमाकल्पादास्थितस्तप: ॥ ६ ॥
अनुवाद
सृष्टि के प्रारंभ से ही नारायण ऋषि इस भारत भूमि पर मानवता के लोक और परलोक के लाभ के लिए धार्मिक कर्त्तव्यों का निर्वाह और आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मसंयम का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुए तपस्या कर रहे थे।