श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 87: साक्षात् वेदों द्वारा स्तुति  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  10.87.47 
 
 
इत्याद्यमृषिमानम्य तच्छिष्यांश्च महात्मन: ।
ततोऽगादाश्रमं साक्षात् पितुर्द्वैपायनस्य मे ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  [शुकदेव गोस्वामी आगे कहते हैं] : ऐसा कहकर नारदजी ऋषियों में श्रेष्ठ श्री नारायण ऋषि और उनके संत स्वरूप शिष्यों को प्रणाम करके मेरे पिता द्वैपायन व्यास की आश्रम को वापस लौट आए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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