श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 87: साक्षात् वेदों द्वारा स्तुति  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.87.31 
 
 
न घटत उद्भ‍व: प्रकृतिपूरुषयोरजयो-
रुभययुजा भवन्त्यसुभृतो जलबुद्बुदवत् ।
त्वयि त इमे ततो विविधनामगुणै: परमे
सरित इवार्णवे मधुनि लिल्युरशेषरसा: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  न तो प्रकृति और न ही आत्मा कभी जन्म लेते हैं, फिर भी जब ये दोनों मिलते हैं, तो जीवों का जन्म होता है, बिल्कुल उसी तरह जैसे पानी और हवा मिलकर बुलबुले बनाते हैं। और जिस तरह नदियाँ समुद्र में मिलती हैं या विभिन्न फूलों का रस शहद में मिल जाता है, उसी तरह ये सभी जीव अपने नाम और गुणों के साथ अंततः आपसे मिल जाते हैं, जो परम ब्रह्म हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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