सदिव मनस्त्रिवृत्त्वयि विभात्यसदामनुजात्
सदभिमृशन्त्यशेषमिदमात्मतयात्मविद: ।
न हि विकृतिं त्यजन्ति कनकस्य तदात्मतया
स्वकृतमनुप्रविष्टमिदमात्मतयावसितम् ॥ २६ ॥
अनुवाद
संसार की समस्त वस्तुएँ चाहे वो सांसारिक मामलों से शुरू होकर मानवीय शरीर के जटिल स्वरूप तक हो, प्रकृति के तीनों गुणों से निर्मित हैं। हालाँकि ये वस्तुएँ और घटनाएँ वास्तविक प्रतीत होती हैं, किन्तु स्थूल रूप में ये आध्यात्मिक सत्य का आभास हैं तथा आपके मन की कल्पनाएँ हैं। फिर भी जो लोग परम तत्व, परमात्मा को जानते हैं वे भौतिक दुनिया को वास्तविक और साथ ही साथ उससे अभिन्न मानते हैं। जिस प्रकार से सोने से बनी वस्तुओं को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि वे शुद्ध सोने से बनी हैं, उसी प्रकार संसार को उस ईश्वर से अलग नहीं किया जा सकता जिसने इसे बनाया और फिर इसमें प्रवेश कर गए।