जनिमसत: सतो मृतिमुतात्मनि ये च भिदां
विपणमृतं स्मरन्त्युपदिशन्ति त आरुपितै: ।
त्रिगुणमय: पुमानिति भिदा यदबोधकृता
त्वयि न तत: परत्र स भवेदवबोधरसे ॥ २५ ॥
अनुवाद
जो विद्वान यह घोषणा करते हैं कि पदार्थ ही सृष्टि का मूल है, कि आत्मा के स्थायी गुणों को नष्ट किया जा सकता है, कि आत्मा और पदार्थ के अलग-अलग पहलुओं से मिलकर आत्मा बनता है, या कि भौतिक घटनाएँ ही वास्तविकता हैं—ऐसे सभी विद्वान अपनी शिक्षाओं को उन गलत विचारों पर आधारित करते हैं जो सच्चाई को छिपाते हैं। यह द्वैत की धारणा कि जीव प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न होता है, मात्र अज्ञानता का परिणाम है। ऐसी धारणा का आपके अंदर कोई आधार नहीं है, क्योंकि आप सभी मोह-माया से परे हैं और सदैव पूर्ण चेतना का अनुभव करते हैं।