श्रीशुक उवाच
बुद्धीन्द्रियमन:प्राणान् जनानामसृजत् प्रभु: ।
मात्रार्थं च भवार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च ॥ २ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : भगवान ने जीवों की भौतिक बुद्धि, इंद्रियाँ, मन और प्राण को इसलिए प्रकट किया ताकि वे अपनी इच्छाओं को इंद्रिय-सुख में लगा सकें, सकाम कर्म में संलग्न होने के लिए बार-बार जन्म ले सकें, अगले जन्म में ऊपर उठ सकें और अंततः मोक्ष प्राप्त कर सकें।