श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 87: साक्षात् वेदों द्वारा स्तुति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.87.2 
 
 
श्रीशुक उवाच
बुद्धीन्द्रियमन:प्राणान् जनानामसृजत् प्रभु: ।
मात्रार्थं च भवार्थं च आत्मनेऽकल्पनाय च ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : भगवान ने जीवों की भौतिक बुद्धि, इंद्रियाँ, मन और प्राण को इसलिए प्रकट किया ताकि वे अपनी इच्छाओं को इंद्रिय-सुख में लगा सकें, सकाम कर्म में संलग्न होने के लिए बार-बार जन्म ले सकें, अगले जन्म में ऊपर उठ सकें और अंततः मोक्ष प्राप्त कर सकें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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