महर्षियों की बताई हुई राहों पर चलने वाले भक्तों में से कुछ की दृष्टि स्पष्ट नहीं होती, वे अपनी पूजा में ब्रह्म को अपने पेट में स्थित मानते हैं। किंतु आरुणियों ने हृदय में ब्रह्म को स्थित समझकर पूजा की। यह हृदय शरीर का वह सूक्ष्म स्थान है, जिससे श्वास, प्राण और स्मरण की शक्तियां निकलती हैं। हे अनंत! ये भक्त अपनी चेतना को यहाँ से सीधा ऊपर सिर के चोटी पर ले जाते हैं, जहाँ पर वो ब्रह्म को प्रत्यक्ष देख पाते हैं। तत्पश्चात् अपने सिर की शिखा से होते हुए परम गंतव्य की ओर चले जाते हैं। वे उस स्थान पर पहुँच जाते हैं, जहाँ से उन्हें इस संसार और यहाँ की मृत्यु का मुँह दोबारा कभी देखना नहीं पड़ेगा।