तत्र वै वार्षितान् मासानवात्सीत् स्वार्थसाधक: ।
पौरै: सभाजितोऽभीक्ष्णं रामेणाजानता च स: ॥ ४ ॥
अनुवाद
अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए वे वहाँ वर्षा ऋतु तक ठहरे रहे। बलराम तथा अन्य नगर निवासियों ने उन्हें न पहचानते हुए तरह-तरह से उनका सम्मान और सत्कार किया।