श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 86: अर्जुन द्वारा सुभद्रा-हरण तथा कृष्ण द्वारा अपने भक्तों को आशीर्वाद दिया जाना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.86.13 
 
 
श्रीशुक उवाच
कृष्णस्यासीद् द्विजश्रेष्ठ: श्रुतदेव इति श्रुत: ।
कृष्णैकभक्त्या पूर्णार्थ: शान्त: कविरलम्पट: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: श्रुतदेव नामक कृष्ण का एक भक्त था, जो उच्च कोटि का ब्राह्मण था। भगवान् कृष्ण की अनन्य भक्ति करने से पूर्णतया तुष्ट होने के कारण, वह शान्त एवं विद्वान था तथा इन्द्रिय-तृप्ति से सर्वथा रहित था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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