श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.85.6 
 
 
प्राणादीनां विश्वसृजां शक्तयो या: परस्य ता: ।
पारतन्त्र्याद् वैसाद‍ृश्याद् द्वयोश्चेष्टैव चेष्टताम् ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  प्राण और ब्रह्माण्ड-सृजन के अन्य तत्त्व जो शक्तियाँ दिखाते हैं, वो भगवान् की निजी शक्तियाँ हैं, क्योंकि प्राण और पदार्थ दोनों ही भगवान् के अधीन और उनके आश्रित हैं और एक-दूसरे से अलग भी हैं। इसलिए इस भौतिक जगत की हर सक्रिय वस्तु भगवान् द्वारा गतिशील बनाई जाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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