श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  10.85.59 
 
 
श्रीसूत उवाच
य इदमनुश‍ृणोति श्रावयेद् वा मुरारे-
श्चरितममृतकीर्तेर्वर्णितं व्यासपुत्रै: ।
जगदघभिदलं तद्भ‍क्तसत्कर्णपूरं
भगवति कृतचित्तो याति तत्क्षेमधाम ॥ ५९ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री सूत गोस्वामी कहते हैं: भगवान मुरारी ने जो यह लीला की, उनकी कीर्ति सदा अविनाशी रहेगी। यह लीला ब्रह्मांड के समस्त पापों को नष्ट करने वाली है और भक्तों के कानों के लिए दिव्य आभूषण की तरह है। जो कोई भी व्यास जी के पूज्य पुत्र द्वारा सुनाई गई इस कथा को ध्यान से सुनता है या सुनाता है, वह भगवान में मन लगाकर ध्यान कर सकता है और ईश्वर के सर्व मंगलमयी धाम को प्राप्त कर सकता है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत पचासी अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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