एतन्नानाविधं विश्वमात्मसृष्टमधोक्षज ।
आत्मनानुप्रविश्यात्मन् प्राणो जीवो बिभर्ष्यज ॥ ५ ॥
अनुवाद
हे दिव्य प्रभु, आपने इस संपूर्ण विविध ब्रह्माण्ड को आप ही से निर्मित किया, और फिर आप अपने निजी रूप में परमात्मा के रूप में इसमें प्रवेश किया। इस तरह, हे अजन्मे परम आत्मा, आप सभी की जीवन शक्ति और चेतना के रूप में सृष्टि का पालन-पोषण करते हैं।