दर्शनं वां हि भूतानां दुष्प्रापं चाप्यदुर्लभम् ।
रजस्तम:स्वभावानां यन्न: प्राप्तौ यदृच्छया ॥ ४० ॥
अनुवाद
अनेक जीवों के लिए आप दोनों विभुओं के दर्शन दुर्लभ हैं। पर हमारे जैसों के लिए जो कि तमोगुण और रजोगुण में स्थित है, आपके दर्शन सरल है जब आप अपनी इच्छा से प्रकट होते हैं।