समर्हयामास स तौ विभूतिभि-
र्महार्हवस्त्राभरणानुलेपनै: ।
ताम्बूलदीपामृतभक्षणादिभि:
स्वगोत्रवित्तात्मसमर्पणेन च ॥ ३७ ॥
अनुवाद
उसने अपनी सारी उपलब्ध सम्पत्ति - कीमती कपड़े, जेवर, सुगन्धित चन्दन का लेप, पान, दीपक, श्रेष्ठ भोजन और अन्य चीज़ों से उन दोनों की पूजा की। इस प्रकार उसने उन्हें अपने परिवार की सारी धन-सम्पत्ति तो अर्पित ही की, साथ ही उन पर अपने आप को भी न्योछावर कर दिया।