श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  10.85.37 
 
 
समर्हयामास स तौ विभूतिभि-
र्महार्हवस्‍त्राभरणानुलेपनै: ।
ताम्बूलदीपामृतभक्षणादिभि:
स्वगोत्रवित्तात्मसमर्पणेन च ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  उसने अपनी सारी उपलब्ध सम्पत्ति - कीमती कपड़े, जेवर, सुगन्धित चन्दन का लेप, पान, दीपक, श्रेष्ठ भोजन और अन्य चीज़ों से उन दोनों की पूजा की। इस प्रकार उसने उन्हें अपने परिवार की सारी धन-सम्पत्ति तो अर्पित ही की, साथ ही उन पर अपने आप को भी न्योछावर कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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