श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.85.31 
 
 
यस्यांशांशांशभागेन विश्वोत्पत्तिलयोदया: ।
भवन्ति किल विश्वात्मंस्तं त्वाद्याहं गतिं गता ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे विश्वात्मा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, पालन और विनाश, ये तीनों ही आपके अंश के अंश के अंश के अंश मात्र द्वारा ही संपन्न होते हैं। आज मैं आपकी शरण में आई हूँ, हे परमेश्वर।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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