श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  10.85.27-28 
 
 
अथ तत्र कुरुश्रेष्ठ देवकी सर्वदेवता ।
श्रुत्वानीतं गुरो: पुत्रमात्मजाभ्यां सुविस्मिता ॥ २७ ॥
कृष्णरामौ समाश्राव्य पुत्रान् कंसविहिंसितान् ।
स्मरन्ती कृपणं प्राह वैक्लव्यादश्रुलोचना ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  उस समय, हे कुरुश्रेष्ठ, सब जगह पूजनीय देवकी को अपने दोनों पुत्रों, कृष्ण तथा बलराम को सम्बोधित करने का मौका मिला। इससे पहले उन्होंने बड़ी हैरानी से यह सुना था कि उनके ये बेटे अपने गुरु के बेटे को मौत से वापस ले आए थे। अब वह कंस द्वारा मारे गए अपने पुत्रों के बारे में सोचकर बहुत दुखी हुईं और आँखों में आँसू भरकर कृष्ण तथा बलराम से दीनतापूर्वक बोलीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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