अहं यूयमसावार्य इमे च द्वारकौकस: ।
सर्वेऽप्येवं यदुश्रेष्ठ विमृग्या: सचराचरम् ॥ २३ ॥
अनुवाद
हे यदुश्रेष्ठ, मैं, आप, मेरे पूज्य भ्राता और ये द्वारकावासी सभी को इसी दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। दरअसल, हमें संपूर्ण सृष्टि, चाहे वह चेतन हो या जड़, को इसमें शामिल करना चाहिए।