श्रीशुक उवाच
आकर्ण्येत्थं पितुर्वाक्यं भगवान् सात्वतर्षभ: ।
प्रत्याह प्रश्रयानम्र: प्रहसन् श्लक्ष्णया गिरा ॥ २१ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने कहा : सात्वतों के नेता भगवान ने अपने पिता के शब्दों को सुनकर विनम्रतापूर्वक अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए मृदु स्वर में उत्तर दिया।