श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  10.85.21 
 
 
श्रीशुक उवाच
आकर्ण्येत्थं पितुर्वाक्यं भगवान् सात्वतर्षभ: ।
प्रत्याह प्रश्रयानम्र: प्रहसन् श्लक्ष्णया गिरा ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : सात्वतों के नेता भगवान ने अपने पिता के शब्दों को सुनकर विनम्रतापूर्वक अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए मृदु स्वर में उत्तर दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.