श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  10.85.19 
 
 
तत्ते गतोऽस्म्यरणमद्य पदारविन्द-
मापन्नसंसृतिभयापहमार्तबन्धो ।
एतावतालमलमिन्द्रियलालसेन
मर्त्यात्मद‍ृक् त्वयि परे यदपत्यबुद्धि: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, हे दुखियों के मित्र, अब मैं शरण के लिए तुम्हारे चरणकमलों में आया हूँ - वही चरणकमल, जो शरणागतों के सारे संसारिक भय दूर करने वाले हैं। बस, इन्द्रिय-भोग की लालसा बहुत हो चुकी है, जिसके कारण मैं अपनी पहचान इस नश्वर शरीर से करता हूँ और तुम्हें, परम पुरुष को अपना बच्चा समझता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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