युवां न न: सुतौ साक्षात् प्रधानपुरुषेश्वरौ ।
भूभारक्षत्रक्षपण अवतीर्णौ तथात्थ ह ॥ १८ ॥
अनुवाद
तुम हमारे बेटे नहीं हो, बल्कि प्रकृति और उसके निर्माता दोनों के ही स्वामी हो। तुम दोनों ने जैसा कि तुमने हमें स्वयं बताया है, पृथ्वी को उन शासकों से मुक्त करने के लिए अवतार लिया है, जो उस पर बहुत बड़ा बोझ बने हुए हैं।