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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 85: कृष्ण द्वारा वसुदेव को उपदेश दिया जाना तथा देवकी-पुत्रों की वापसी
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श्लोक 17
श्लोक
10.85.17
असावहं ममैवैते देहे चास्यान्वयादिषु ।
स्नेहपाशैर्निबध्नाति भवान् सर्वमिदं जगत् ॥ १७ ॥
अनुवाद
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आप स्नेह की रस्सियों से इस पूरे विश्व को बांधे रखते हैं, जिससे जब लोग अपने भौतिक शरीरों पर विचार करते हैं, तो वे सोचते हैं, "यह मैं हूँ", और जब वे अपनी संतान और अन्य संबंधियों पर विचार करते हैं, तो वे सोचते हैं, "ये मेरे हैं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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