न ह्यम्मयानि तीर्थानि न देवा मृच्छिलामया: ।
ते पुनन्त्युरुकालेन दर्शनादेव साधव: ॥ ११ ॥
अनुवाद
जलवाले स्थान ही असली पवित्र तीर्थस्थल नहीं होते, मिट्टी और पत्थर की कोरी मूर्तियाँ भी सच्चे आराध्य देवता नहीं हैं। ये सब दीर्घकाल के बाद ही किसी को पवित्र कर पाते हैं, परंतु संत प्रवृत्ति वाले मुनिजन दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देते हैं।