श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 84: कुरुक्षेत्र में ऋषियों के उपदेश  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.84.11 
 
 
न ह्यम्मयानि तीर्थानि न देवा मृच्छिलामया: ।
ते पुनन्त्युरुकालेन दर्शनादेव साधव: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  जलवाले स्थान ही असली पवित्र तीर्थस्थल नहीं होते, मिट्टी और पत्थर की कोरी मूर्तियाँ भी सच्चे आराध्य देवता नहीं हैं। ये सब दीर्घकाल के बाद ही किसी को पवित्र कर पाते हैं, परंतु संत प्रवृत्ति वाले मुनिजन दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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