श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 84: कुरुक्षेत्र में ऋषियों के उपदेश  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  10.84.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
श्रुत्वा पृथा सुबलपुत्र्यथ याज्ञसेनी
माधव्यथ क्षितिपपत्न्‍य उत स्वगोप्य: ।
कृष्णेऽखिलात्मनि हरौ प्रणयानुबन्धं
सर्वा विसिस्म्युरलमश्रुकलाकुलाक्ष्य: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: पृथा, गान्धारी, द्रौपदी, सुभद्रा, दूसरे राजाओं की पत्नियाँ और भगवान श्रीकृष्ण के साथ जो गोपियाँ ग्वालों वाली सहेलियाँ थीं, वे सब भगवान श्रीकृष्ण की रानियों के प्रति प्यार के इस अथाह सागर को देखकर हैरान हो गयीं और उनकी आँखों में आँसू भर आए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.