श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 83: कृष्ण की रानियों से द्रौपदी की भेंट  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  10.83.9 
 
 
श्रीसत्यभामोवाच
यो मे सनाभिवधतप्तहृदा ततेन
लिप्ताभिशापमपमार्ष्टुमुपाजहार ।
जित्वर्क्षराजमथ रत्नमदात् स तेन
भीत: पितादिशत मां प्रभवेऽपि दत्ताम् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री सत्यभामा ने कहा: मेरे पिता का मन अपने भाई की हत्या से व्यथित था, इस कारण उन्होंने भगवान कृष्ण पर यह आरोप लगाया। वे इश दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान ने भालुओं के राजा को परास्त कर स्यमंतक मणि वापस लेकर मेरे पिता को दे दी। इस अपराध के परिणाम से डरकर मेरे पिता ने मुझे भगवान को अर्पित कर दिया, यद्यपि मेरा विवाह अन्यत्र निश्चित हो चुका था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.