श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 83: कृष्ण की रानियों से द्रौपदी की भेंट  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.83.32 
 
 
मां तावद् रथमारोप्य हयरत्नचतुष्टयम् ।
शार्ङ्गमुद्यम्य सन्नद्धस्तस्थावाजौ चतुर्भुज: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् भगवान् ने चार अति उत्तम घोड़ों से खींचे जाने वाले अपने रथ में मुझे स्थान दिया। उन्होंने कवच पहना और अपना शार्ङ्ग धनुष तैयार किया। फिर वे रथ पर खड़े हुए और युद्धभूमि में उन्होंने अपनी चारों भुजाएँ प्रकट कीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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