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अध्याय 82: वृन्दावनवासियों से कृष्ण तथा बलराम की भेंट
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श्लोक 21
श्लोक
10.82.21
कंसप्रतापिता: सर्वे वयं याता दिशं दिशम् ।
एतर्ह्येव पुन: स्थानं दैवेनासादिता: स्वस: ॥ २१ ॥
अनुवाद
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कंस के अत्याचारों से परेशान होकर हम सभी अलग-अलग दिशाओं में भाग गए थे, लेकिन भगवान की कृपा से अब अंततः हम अपने घरों में लौट सके हैं, मेरी प्यारी बहन।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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