श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 81: भगवान् द्वारा सुदामा ब्राह्मण को वरदान  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  10.81.37 
 
 
भक्ताय चित्रा भगवान् हि सम्पदो
राज्यं विभूतीर्न समर्थयत्यज: ।
अदीर्घबोधाय विचक्षण: स्वयं
पश्यन् निपातं धनिनां मदोद्भ‍वम् ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  जिस भक्त में अध्यात्म की विवेक-बुद्धि नहीं होती, उसे सर्वोच्च प्रभु कभी भी इस जगत का अनोखा ऐश्वर्य - राजसी शक्ति और भौतिक संपत्ति - नहीं प्रदान करते। वास्तव में, अपने असीम ज्ञान से अजन्मे प्रभु अच्छी तरह जानते हैं कि किस तरह अहंकार और अभिमान का नशा किसी धनवान व्यक्ति का पतन करा सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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