श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 81: भगवान् द्वारा सुदामा ब्राह्मण को वरदान  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  10.81.34 
 
 
नन्वब्रुवाणो दिशते समक्षं
याचिष्णवे भूर्यपि भूरिभोज: ।
पर्जन्यवत्तत् स्वयमीक्षमाणो
दाशार्हकाणामृषभ: सखा मे ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  आख़िरकार, दाशार्हों में श्रेष्ठ और असीम धन-सम्पदा के उपभोक्ता मेरे मित्र कृष्ण ने पा लिया कि मैं चुपके से उनसे कुछ माँगना चाहता हूँ। इस तरह जब मैं उनके सामने खड़ा था, तो उन्होंने इस विषय में ज़रूर कुछ नहीं कहा, किंतु उन्होंने मुझे प्रचुर धन-सम्पदा प्रदान की। उन्होंने दयावान वर्षा वाले बादल की तरह कार्य किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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