श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 80: द्वारका में भगवान् श्रीकृष्ण से ब्राह्मण सुदामा की भेंट  »  श्लोक 35-36
 
 
श्लोक  10.80.35-36 
 
 
अपि न: स्मर्यते ब्रह्मन् वृत्तं निवसतां गुरौ ।
गुरुदारैश्चोदितानामिन्धनानयने क्व‍‍चित् ॥ ३५ ॥
प्रविष्टानां महारण्यमपर्तौ सुमहद् द्विज ।
वातवर्षमभूत्तीव्रं निष्ठुरा: स्तनयित्नव: ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे ब्राह्मण, जब हम अपने गुरु के साथ निवास करते थे, तब जो हमारे साथ वह घटना घटी थी, क्या वह आपको याद है? गुरु पत्नी ने एक बार हमें जलाऊ लकड़ी लाने के लिए भेजा था। हे द्विज, जब हम एक विस्तृत जंगल में प्रवेश कर गए तो अचानक समय से पहले ही तूफ़ान आ गया। वह भी तूफ़ान ऐसा कि उसकी तीव्र हवाएँ, भारी वर्षा और कर्कश गर्जना भयावह थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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