श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 80: द्वारका में भगवान् श्रीकृष्ण से ब्राह्मण सुदामा की भेंट  »  श्लोक 16-17
 
 
श्लोक  10.80.16-17 
 
 
त्रीणि गुल्मान्यतीयाय तिस्र: कक्षाश्च सद्विज: ।
विप्रोऽगम्यान्धकवृष्णीनां गृहेष्वच्युतधर्मिणाम् ॥ १६ ॥
गृहं द्वय‍ष्टसहस्राणां महिषीणां हरेर्द्विज: ।
विवेशैकतमं श्रीमद् ब्रह्मानन्दं गतो यथा ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  पण्डित ब्राह्मण ने कुछ स्थानिक ब्राह्मणों के साथ तीन सुरक्षा चौकियाँ और तीन द्वार पार किए, और फिर वह भगवान कृष्ण के आज्ञाकारी भक्तों, अन्धकों और वृष्णियों के घरों से गुज़रा, जहाँ आम तौर पर कोई नहीं जा सकता था। तत्पश्चात वह भगवान हरि की सोलह हज़ार रानियों के ऐश्वर्यशाली महलों में से एक में प्रवेश किया और ऐसा करते समय उसे ऐसा लगा जैसे वह आनन्द की प्राप्ति कर रहा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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