श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 79: भगवान् बलराम की तीर्थयात्रा  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.79.32 
 
 
स्वपत्यावभृथस्‍नातो ज्ञातिबन्धुसुहृद् वृत: ।
रेजे स्वज्योत्स्‍नयेवेन्दु: सुवासा: सुष्ठ्वलङ्कृत: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  अपनी पत्नी के साथ अवभृथ स्नान करके सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजे-धजे भगवान बलराम जी अपने निकट के संबंधियों, परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों से घिरे चंद्रमा की तरह चमक रहे थे, जो अपनी चमकदार किरणों से घिरा हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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