ततोऽभिव्रज्य भगवान् केरलांस्तु त्रिगर्तकान् ।
गोकर्णाख्यं शिवक्षेत्रं सान्निध्यं यत्र धूर्जटे: ॥ १९ ॥
आर्यां द्वैपायनीं दृष्ट्वा शूर्पारकमगाद् बल: ।
तापीं पयोष्णीं निर्विन्ध्यामुपस्पृश्याथ दण्डकम् ॥ २० ॥
प्रविश्य रेवामगमद् यत्र माहिष्मती पुरी ।
मनुतीर्थमुपस्पृश्य प्रभासं पुनरागमत् ॥ २१ ॥
अनुवाद
इसके बाद प्रभु केरल और त्रिगर्त राज्यों से होकर यात्रा करते हुए भगवान शिव की पवित्र नगरी गोकर्ण गए, जहाँ साक्षात् भगवान धूर्जटी (शिव) प्रकट होते हैं। इसके बाद एक द्वीप में निवास करने वाली देवी पार्वती का दर्शन करके बलरामजी पवित्र शूर्पारक जिले से होकर गुजरे और तापी, पयोष्णी और निर्विन्ध्या नदियों में स्नान किया। तत्पश्चात् वो दण्डकारण्य में प्रवेश करके रेवा नदी गए, जिसके तट पर माहिष्मती नगरी स्थित है। फिर उन्होंने मनुतीर्थ में स्नान किया और अंततः प्रभास लौट आए।