इन्द्रप्रस्थं गत: कृष्ण आहूतो धर्मसूनुना ।
राजसूयेऽथ निवृत्ते शिशुपाले च संस्थिते ॥ ६ ॥
कुरुवृद्धाननुज्ञाप्य मुनींश्च ससुतां पृथाम् ।
निमित्तान्यतिघोराणि पश्यन् द्वारवतीं ययौ ॥ ७ ॥
अनुवाद
धर्मराज युधिष्ठिर के निमंत्रण पर भगवान कृष्ण इन्द्रप्रस्थ गये थे। अब राजसूय यज्ञ पूरा हो चुका था और शिशुपाल का वध हो चुका था। इसी बीच भगवान कृष्ण को कुछ अपशकुन दिखाई देने लगे। इसलिए उन्होंने कुरुवंशी बुजुर्गों, महान ऋषियों और पृथा और उनके पुत्रों से विदा ली और द्वारका लौट आये।