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श्लोक 22
श्लोक
10.76.22
क्वचिद्भूमौ क्वचिद् व्योम्नि गिरिमूर्ध्नि जले क्वचित् ।
अलातचक्रवद् भ्राम्यत् सौभं तद् दुरवस्थितम् ॥ २२ ॥
अनुवाद
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एक पल में सौभ विमान पृथ्वी में, आकाश में, पर्वत की चोटी पर या जल में दिखाई देता था। घूर्णन करते अग्नि-पुंज की तरह, यह कभी एक स्थान पर नहीं टिकता था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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