श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 75: दुर्योधन का मानमर्दन  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  10.75.1-2 
 
 
श्रीराजोवाच
अजातशत्रोस्तं द‍ृष्ट्वा राजसूयमहोदयम् ।
सर्वे मुमुदिरे ब्रह्मन् नृदेवा ये समागता: ॥ १ ॥
दुर्योधनं वर्जयित्वा राजान: सर्षय: सुरा: ।
इति श्रुतं नो भगवंस्तत्र कारणमुच्यताम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज परीक्षित ने कहा: हे ब्राह्मण, मैंने आपसे जो कुछ सुना उसके अनुसार, अजातशत्रु राजा के राजसूय यज्ञ के अद्भुत उत्सव को देखकर एकमात्र दुर्योधन के अलावा, वहाँ एकत्रित सभी राजा, ऋषि और देवतागण अत्यंत प्रसन्न थे। हे प्रभु, कृपा करके मुझे बताएँ कि ऐसा क्यों हुआ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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