श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 74: राजसूय यज्ञ में शिशुपाल का उद्धार  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  10.74.50 
 
 
वर्णितं तदुपाख्यानं मया ते बहुविस्तरम् ।
वैकुण्ठवासिनोर्जन्म विप्रशापात् पुन: पुन: ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  मैं पहले ही तुम्हें वैकुण्ठ के दो निवासियों के बारे में विस्तार से बता चुका हूँ, जिन्हें ब्राह्मणों द्वारा शापित होने के कारण भौतिक दुनिया में बार-बार जन्म लेना पड़ा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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